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Serious Men Review

कलाकार: नवाजुद्दीन सिद्दीकी, नासर, इंदिरा तिवारी, अक्षत दास, श्वेता बासु प्रसाद, संजय नार्वेकर आदि
निर्देशक: सुधीर मिश्रा
ओटीटी: नेटफ्लिक्स
रेटिंग: ***

अवधि – 2 घंटे

Initial release2 October 2020

फ़िल्म शुक्रवार को नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हो गयी. कहानी सपनों की नगरी मुंबई में शुरू होती है, अयानमनी नाम के कतई जुगाडू  इंसान धरती पर दोनों पैरो का जोर लगाके सबसे ऊँची छलांग मारके आसमान को तापने का सपने देख रहे है। भाई साहब कहने के लिए एक महशूर साइंटिस्ट के पर्सनल असिस्टेन्ट है लेकिन दिमाग में ज्ञान का भंडार भरा हुआ है। जिसके सामने इनके बॉस भी इनके सामने हाथ जोड़कर मनी शाहब को सलाम ठोकने पर मजबूर हो जाएंगे जिंदगी का सबसे बड़ा विलेन है। गरीबी का राक्षस इनको इनके  कंगाल फटेहाल पिताजी विरासत में पूरे सम्मान के साथ प्राप्त हुआ है परिवार में जूनियर जुगाड़ू के पैदा होने के बाद इस गरीबी वाले अदला-बदली के सिलसिले से पीछा छुड़ाने का रास्ता सिर्फ एक है हाथ की लकीरों की डिजाइन को बदलने जैसे असंभव कारनामे को हकीकत में बदलना पड़ेगा।

Serious Men Review

कहानी में ट्विस्ट आता है जब मनी साहब गरीबी के अंधेरे को अमीरी की धूप से बदलने का एक मास्टर प्लान तैयार करते हैं जो हमेशा के लिए उनके वंश के उपर लगे सड़कछाप जिंदगी के धब्बों को सीरियस मैन के सूट-बूट और रंगीन टाई की चमक में बदल सकता है। क्या सोच रहे हैं रातों रात सड़क से महल का सपना सच करने का शॉर्टकट वाला सीक्रेट रास्ता कहां से शुरू होता है मनी के शैतान जीनीअस दिमाग में खुराफात की हवा से भरे हुए रंग बिरंगे गुब्बारे उड़ेंगे या फूस होकर फूट जायेंगे किस्मत से चुम्बक की तरह चिपकी हुई गरीबी की साइकिल कभी पंचर होकर रास्ता भटक जाएगी या फिर मनी शाहब के लाडले पुत्र भी हरे गुलाबी होंठों को छूने के लिए तरस जाएंगे सारे जवाब मिलेंगे नेटफ्लिक्स में।

 

सिरियस मेन ठीक अपने नाम से उलटी दिमाग में गुदगुदी करने वाली चालाक फिल्म है जिसमें कहने के लिए जिंदगी मनी शाहब के मजे ले रही है लेकिन हकीकत में डायरेक्टर शाहब  पर्दे के इस तरफ बैठी हुई पूरी पब्लिक को आइना दिखा कर उनकी फिरकी ले रहे हैं जीवन मरण का वही पुराना खेल जिसमें मैं और आप दोनों अपनी किस्मत का हवाई जहाज लेकर उड़ान भरने निकले हैं बस उसी असलियत को मजेदार कहानी की की शक्ल में कुछ अतरंगी डायलॉग का सहारा लेकर आपकी तरह उछाला गया है  जिसमे आप खुद की  जिंदगी की परछाई महसूस कर सकते है  और टूटे हुए सपनो  की बेवफाई भी याद आ जाती है।

कुछ कन्त्रोवर्सिअल टॉपिक भी है तो फिल्म में  हो बिना डरे हुए जोर दार तमाचे सोसाइटी के गाल पर मारे जाते हैं उंच नीच वाला घटिया कास्ट सिस्टम हो मंदिर मस्जिद वाली गंदी राजनीति या फिर धर्म के नाम पर इंसान को इंसान का दुश्मन बनाना हर चीज धुआ धुआं हवा में उड़ाई गई है  किस तरह आजकल टेलेंट के नाम पर बच्चों को जोकर बनाकर स्क्रीन पर करतब दिखाने का नाटक किया जाता है जिसके पीछे नोटों की गड्डियो के बदले छोटे बच्चो के  भविष्य को बेचने का कारोबार चलाया जाता है उसको भी पूरी तरह से एक्स्पोस करने की कोशिश की गई है जिसमे इसमे सबसे मजेदार है इंसान नामक प्राणी की मुर्खता को खुलम खुला पर्दे पर सामने रखना जिसमें सांफ इशारा किया गया है कि दुनिया का सबसे आसान काम है इंसान को बेवकूफ बनाना।

फिल्म में साइंस से आशिकी लड़ाने वाले धुरंदरो की आशिकी लड़ाने वाले की आंखें अपनी तरफ खींचने के लिए कुछ भारी भरकम साइंटिफिक टर्म का भी इस्तेमाल किया गया है जिसमें लेकर बटरफ्लाई टर्न ऑफ ग्रेविटी की आशिकी और एलियंस के सीक्रेट दुनिया का भी जिक्र होता है तारीफ करनी होगी डायरेक्टर  सुधीर सर की जिन्होंने पॉलिटिक्स एजुकेशन और साइंस जैसे मजेदार टॉपिक एक दूसरे में घुसा कर मजाकिया शक्ल में हमारे सामने एक इंटेलिजेंस फिल्म को रखा है जिसमें फिक्सनल कहानी के अंदर भी रियालिटी से आंखें दो चार करने का मौका मिलता है।

 

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